Monday, July 13, 2009

बजट में बाल और महिला

बीते हफ्ते छह जुलाई को वित्तमंत्री प्रणब मुखर्जी द्वारा संसद में पेश किए गए वर्ष 2009-10 के आम बजट की लैंगिक पहलू से समीक्षा भी बहुत जरूरी है। यूं तो महिलाओं के लिए आयकर की छूट सीमा एक लाख ८क् हजार से बढ़ाकर एक लाख 10 हजार की गई है।

तीन साल में निरक्षता दर घटा कर आधी करने का लक्ष्य जरूर रखा गया है और ब्रांडेड आभूषणों को उत्पाद शुल्क से छूट देने की भी घोषणा की गई है। लेकिन अहम सवाल यह है कि क्या जेंडर बजट या लैंगिक बजट के दायरे में सिर्फ आयकर छूट, आभूषण, रसोई गैस, रसोई के अन्य उपकरण, सौंदर्य प्रसाधन सामग्री, साड़ी आदि ही आते हैं? ऐसा नहीं है लेकिन पितृसत्तात्मक समाज व्यवस्था में सुनियोजित भ्रम के तहत यह प्रचार आज भी जारी है। यह भ्रामक प्रचार करने में सरकारी मशीनरी, मंत्रीगण व मीडिया सभी शामिल हैं।

6 जुलाई को वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने लोकसभा में बजट पेश करते हुए कहा, ‘अध्यक्ष महोदया, मुझे आशंका है कि सोने और चांदी पर सीमा शुल्क बढ़ाने संबंधी मेरे प्रस्तावों से महिलाओं के मध्य मेरी लोकप्रियता कुछ हद तक कम होगी, इसलिए मैं ब्रांडेड आभूषणों को उत्पाद शुल्क से पूरी तरह से छूट देकर इससे उबरने का प्रस्ताव करता हूं।’ ऐसे देश का वित्त मंत्री, जिसकी राष्ट्रपति व लोकसभा अध्यक्ष महिला हैं, के इन शब्दों में महिलाओं के प्रति पारंपरिक सोच झलकती है।

महिला सशक्तीकरण के दौर में महिलाओं को आभूषणों के जंजाल में फंसाए रखना अफसोसजनक ही कहा जा सकता है। एक दैनिक अखबार ने यहां तक छाप दिया कि इस बजट से लड़कियों की मनपसंद सैंडल पहनने की मुराद पूरी होगी और ब्रांडेड गहने सस्ते होने से वे अपने शौक पूरे कर सकेंगी। दरअसल जेंडर बजट के कंसेप्ट को गहराई से बिना समझे अक्सर पत्रकार महिलाओं पर बजट के प्रभाव का आंकलन करते समय रसोई, आभूषण, आयकर, वस्त्र, सैंडल, सौंदर्य प्रसाधन के आगे कुछ नहीं सोचते।

जबकि महिला सशक्तीकरण, स्वास्थ्य व सामाजिक विकास सरीखे सरोकारों का संबंध बजट से है। भारत लिंग आधारित बजटिंग नामक अध्ययन में इस बात पर विशेष बल दिया गया कि नागरिकों के बीच समानता को संवर्धित करने के अतिरिक्त लिंग समानता अर्थव्यवस्था के लिए लाभदायक हो सकती है। अर्थशास्त्रियों व महिला आंदोलन के दबाव के कारण नौवीं पंचवर्षीय योजना (1997-2002) में हर मंत्रालय व विभाग को अपने बजट का 30 प्रतिशत महिलाओं पर खर्च करने का निर्देश दिया गया था।

यह समझना होगा कि बजट महिलाओं की जिंदगी को कई तरह से प्रभावित करता है। यह महिला कार्यक्रमों के लिए आवंटित बजटीय अनुदान के जरिए प्रत्यक्ष रूप से महिला विकास को प्रोत्साहित करता है व कटौती से महिला सशक्तीकरण के अवसरों को कम करता है। मसलन सरकार वर्ष 2009-10 के जिस आम बजट को सामाजिक समावेशी व समतामूलक बजट बता रही है, उस बजट में महिलाओं की नोडल मिनिस्ट्री के बजट में कटौती कर दी गई है।

पिछले वर्ष 2008-09 के बजट में यह रकम 466.5 करोड़ थी, जो घट कर इस वर्ष 2009-10 के आम बजट में 385.13 करोड़ रह गई है। कामकाजी महिलाओं के लिए हॉस्टल निर्माण की राशि में ५क् फीसद कटौती की घोषणा भी सरकार की नीयत पर सवाल खड़ा करती है। यह रकम 20 करोड़ से घटा कर १क् करोड़ कर दी गई है। एक तरफ सरकार ने सरकारी नौकरियों में महिलाओं की कम भागीदारी के मद्देनजर महिलाओं को प्रोत्साहित करने के लिए हाल में एक मुहिम शुरू की है, जिसके तहत विभिन्न महकमों को महिलाओं को नौकरियों में प्राथमिकता देने और रिक्तियां निकालते वक्त विज्ञापन में सरकारी नौकरियों में महिलाओं को मिलने वाली एक दर्जन विशिष्ट सुविधाओं की जानकारी प्रचारित करने संबंधी आदेश जारी किए गए हैं।

और दूसरी तरफ कामकाजी महिलाओं को हॉस्टल जैसी बुनियादी जरूरत के लिए संस्थागत सपोर्ट में कटौती करना यह दर्शाता है कि सरकार ने महिलाओं की इस जरूरत को कितने सतही तौर पर लिया है। इस बजट में न तो विधवाओं के लिए विशेष योजना की घोषणा की गई और न ही महिला किसानों के लिए कुछ खास है। इंदिरा आवास योजना के नाम पर जो रकम बजट में आवंटित की गई है, उसे महिलाओं के खाते में डाल दिया गया है। इसे जेंडर बजटिंग कैसे कहा जा सकता है, क्योंकि ग्रामीण गरीबों को सस्ते मकान मुहैया करने वाली यह सरकारी योजना पुरुष व महिला दोनों के लिए है।

दरअसल सरकार ने वर्ष २क्क्५ के बजट में पहली मर्तबा जेंडर बजटिंग स्टेटमेंट को शामिल किया था, लेकिन सरकार ने जेंडर बजटिंग के लिए जो प्रणाली अपनाई है, विशेषज्ञों ने उस पर सवाल खड़े कर दिए हैं। सेंटर फॉर बजट एंड गर्वेनस एकाउंटेबिलेटी नामक गैर-सरकारी संगठन ने महिलाओं को लाभ पहुंचाने संबंधी 21 सरकारी योजनाओं का आकलन किया और पाया कि सरकार ने पुरुषों को लाभ पहुंचाने वाली योजनाओं को भी 100 फीसद महिला लाभार्थी वाले विशेष कार्यक्रमों के मद में डाल दिया है जैसे इंदिरा आवास योजना, एकीकृत बाल विकास योजना व स्वास्थ्य व परिवार नियोजन कार्यक्रम आदि। इसमें कोई दो राय नहीं कि जेंडर बजटिंग कई गलत पूर्वानुमानों पर भी आधारित है।

बच्चे, गर्भ निरोधक व परिवार नियोजन, सामाजिक कल्याण संबंधी नीतियों/योजनाएं खासतौर पर महिलाओं के लिए ही हैं -हमारे बजट ऐसा ही बताते हैं। राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने महिला सशक्तीकरण के जिन खास कार्यक्रमों व लक्ष्यों पर फोकस किया, उन्हें हासिल करने की दिशा में सरकार ने इस बजट में वित्तीय उत्तरदायित्व को पूरा नहीं किया है।

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