Monday, July 27, 2009

More than 1 million rupees as rehabilitation package for rescued trafficked bonded child labourers

High Court Judgment Transformed into Action


New Delhi, 22nd July 2009. The recent Delhi High Court judgment against child labour on a petition filed by Bachpan Bachao Andolan(BBA) is beginning to show its effect. In just 5 days after a recent rescue of 66 trafficked children, on BBA’s application, the Sub Divisional Magistrate of Kanjhawala, New Delhi , Mr. Ranjeet Singh expedited the rehabilitation, investigation process and provided Release Certificates under the Bonded Labour Abolition Act 1976. The police had rescued the children on the complained made by BBA.

This Release certificate entitles family of each child with monetary compensation Rs. 20,000, enrollment of children in National Child Labour Programme (NCLP), house under Indira Awas Scheme and other benefits under various government social welfare schemes. Thus, these 66 rescued trafficked bonded labourers would get a rehabilitation amount of more than Rs. 10 lakh and 32 thousand (1.32 million).The rescued bonded child labourers were trafficked from Sitamarhi, Darbhanga, Samastipur, Begusarai, Supaul, Motihari, Deoghar districts of Bihar.

While talking to Mr. Kailash Satyarthi, Founder, Bachpan Bachao Andolan in the government recognized short stay home run by BBA, Mukti Ashram, 10 years old Junaid (name changed) said that “one year back my chacha (village uncle) gave Rs 700 to my father and said that your son will study in a madrassa (Muslim school), as well as also assisting with some minor work. But I was forced to work in the shoe making industry, and when I complained they threatened me. The contractor had beaten me with scissors for not completing the work in one day.” He also informed that he was made to work for twelve to thirteen hours daily, and when he failed to give satisfying results he was beaten-up. He said, “We were always locked up in the room so that we could not go out and talk to anyone but if we really pleaded then an adult would accompany us”.

Mr.Kailash Satyarthi, founder of BBA said that “We have observed that there are various group of traffickers in the name of registered NGOs and placement agencies who are working in Delhi and Bihar. They cheat poor parents bring their children to cities and force them to work as bonded labourers. BBA has already written to the Chief Mininster of Bihar to take action against such traffickers”.

Mr. R.S.Chaurasia, Chairperson, BBA said that “the recent judgement given by Delhi High Court clarified the roles of various departments and agencies in the rescue and rehabilitation of child labourers. In the case of these 66 children, the Delhi Police has started investigation of the employers and going to fine Rs. 20,000 per children to these employers. The amount thus collected will be submitted to Child Welfare Fund and will be given to these children apart from the rehabilitation package. We are glad to see that the judgement and directions given by the High Court have been followed sincerely and we hope that this trend would be maintained in the future as well.”

Monday, July 13, 2009

बजट में बाल और महिला

बीते हफ्ते छह जुलाई को वित्तमंत्री प्रणब मुखर्जी द्वारा संसद में पेश किए गए वर्ष 2009-10 के आम बजट की लैंगिक पहलू से समीक्षा भी बहुत जरूरी है। यूं तो महिलाओं के लिए आयकर की छूट सीमा एक लाख ८क् हजार से बढ़ाकर एक लाख 10 हजार की गई है।

तीन साल में निरक्षता दर घटा कर आधी करने का लक्ष्य जरूर रखा गया है और ब्रांडेड आभूषणों को उत्पाद शुल्क से छूट देने की भी घोषणा की गई है। लेकिन अहम सवाल यह है कि क्या जेंडर बजट या लैंगिक बजट के दायरे में सिर्फ आयकर छूट, आभूषण, रसोई गैस, रसोई के अन्य उपकरण, सौंदर्य प्रसाधन सामग्री, साड़ी आदि ही आते हैं? ऐसा नहीं है लेकिन पितृसत्तात्मक समाज व्यवस्था में सुनियोजित भ्रम के तहत यह प्रचार आज भी जारी है। यह भ्रामक प्रचार करने में सरकारी मशीनरी, मंत्रीगण व मीडिया सभी शामिल हैं।

6 जुलाई को वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने लोकसभा में बजट पेश करते हुए कहा, ‘अध्यक्ष महोदया, मुझे आशंका है कि सोने और चांदी पर सीमा शुल्क बढ़ाने संबंधी मेरे प्रस्तावों से महिलाओं के मध्य मेरी लोकप्रियता कुछ हद तक कम होगी, इसलिए मैं ब्रांडेड आभूषणों को उत्पाद शुल्क से पूरी तरह से छूट देकर इससे उबरने का प्रस्ताव करता हूं।’ ऐसे देश का वित्त मंत्री, जिसकी राष्ट्रपति व लोकसभा अध्यक्ष महिला हैं, के इन शब्दों में महिलाओं के प्रति पारंपरिक सोच झलकती है।

महिला सशक्तीकरण के दौर में महिलाओं को आभूषणों के जंजाल में फंसाए रखना अफसोसजनक ही कहा जा सकता है। एक दैनिक अखबार ने यहां तक छाप दिया कि इस बजट से लड़कियों की मनपसंद सैंडल पहनने की मुराद पूरी होगी और ब्रांडेड गहने सस्ते होने से वे अपने शौक पूरे कर सकेंगी। दरअसल जेंडर बजट के कंसेप्ट को गहराई से बिना समझे अक्सर पत्रकार महिलाओं पर बजट के प्रभाव का आंकलन करते समय रसोई, आभूषण, आयकर, वस्त्र, सैंडल, सौंदर्य प्रसाधन के आगे कुछ नहीं सोचते।

जबकि महिला सशक्तीकरण, स्वास्थ्य व सामाजिक विकास सरीखे सरोकारों का संबंध बजट से है। भारत लिंग आधारित बजटिंग नामक अध्ययन में इस बात पर विशेष बल दिया गया कि नागरिकों के बीच समानता को संवर्धित करने के अतिरिक्त लिंग समानता अर्थव्यवस्था के लिए लाभदायक हो सकती है। अर्थशास्त्रियों व महिला आंदोलन के दबाव के कारण नौवीं पंचवर्षीय योजना (1997-2002) में हर मंत्रालय व विभाग को अपने बजट का 30 प्रतिशत महिलाओं पर खर्च करने का निर्देश दिया गया था।

यह समझना होगा कि बजट महिलाओं की जिंदगी को कई तरह से प्रभावित करता है। यह महिला कार्यक्रमों के लिए आवंटित बजटीय अनुदान के जरिए प्रत्यक्ष रूप से महिला विकास को प्रोत्साहित करता है व कटौती से महिला सशक्तीकरण के अवसरों को कम करता है। मसलन सरकार वर्ष 2009-10 के जिस आम बजट को सामाजिक समावेशी व समतामूलक बजट बता रही है, उस बजट में महिलाओं की नोडल मिनिस्ट्री के बजट में कटौती कर दी गई है।

पिछले वर्ष 2008-09 के बजट में यह रकम 466.5 करोड़ थी, जो घट कर इस वर्ष 2009-10 के आम बजट में 385.13 करोड़ रह गई है। कामकाजी महिलाओं के लिए हॉस्टल निर्माण की राशि में ५क् फीसद कटौती की घोषणा भी सरकार की नीयत पर सवाल खड़ा करती है। यह रकम 20 करोड़ से घटा कर १क् करोड़ कर दी गई है। एक तरफ सरकार ने सरकारी नौकरियों में महिलाओं की कम भागीदारी के मद्देनजर महिलाओं को प्रोत्साहित करने के लिए हाल में एक मुहिम शुरू की है, जिसके तहत विभिन्न महकमों को महिलाओं को नौकरियों में प्राथमिकता देने और रिक्तियां निकालते वक्त विज्ञापन में सरकारी नौकरियों में महिलाओं को मिलने वाली एक दर्जन विशिष्ट सुविधाओं की जानकारी प्रचारित करने संबंधी आदेश जारी किए गए हैं।

और दूसरी तरफ कामकाजी महिलाओं को हॉस्टल जैसी बुनियादी जरूरत के लिए संस्थागत सपोर्ट में कटौती करना यह दर्शाता है कि सरकार ने महिलाओं की इस जरूरत को कितने सतही तौर पर लिया है। इस बजट में न तो विधवाओं के लिए विशेष योजना की घोषणा की गई और न ही महिला किसानों के लिए कुछ खास है। इंदिरा आवास योजना के नाम पर जो रकम बजट में आवंटित की गई है, उसे महिलाओं के खाते में डाल दिया गया है। इसे जेंडर बजटिंग कैसे कहा जा सकता है, क्योंकि ग्रामीण गरीबों को सस्ते मकान मुहैया करने वाली यह सरकारी योजना पुरुष व महिला दोनों के लिए है।

दरअसल सरकार ने वर्ष २क्क्५ के बजट में पहली मर्तबा जेंडर बजटिंग स्टेटमेंट को शामिल किया था, लेकिन सरकार ने जेंडर बजटिंग के लिए जो प्रणाली अपनाई है, विशेषज्ञों ने उस पर सवाल खड़े कर दिए हैं। सेंटर फॉर बजट एंड गर्वेनस एकाउंटेबिलेटी नामक गैर-सरकारी संगठन ने महिलाओं को लाभ पहुंचाने संबंधी 21 सरकारी योजनाओं का आकलन किया और पाया कि सरकार ने पुरुषों को लाभ पहुंचाने वाली योजनाओं को भी 100 फीसद महिला लाभार्थी वाले विशेष कार्यक्रमों के मद में डाल दिया है जैसे इंदिरा आवास योजना, एकीकृत बाल विकास योजना व स्वास्थ्य व परिवार नियोजन कार्यक्रम आदि। इसमें कोई दो राय नहीं कि जेंडर बजटिंग कई गलत पूर्वानुमानों पर भी आधारित है।

बच्चे, गर्भ निरोधक व परिवार नियोजन, सामाजिक कल्याण संबंधी नीतियों/योजनाएं खासतौर पर महिलाओं के लिए ही हैं -हमारे बजट ऐसा ही बताते हैं। राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने महिला सशक्तीकरण के जिन खास कार्यक्रमों व लक्ष्यों पर फोकस किया, उन्हें हासिल करने की दिशा में सरकार ने इस बजट में वित्तीय उत्तरदायित्व को पूरा नहीं किया है।

Sunday, July 12, 2009

घरेलु कलह में प्रताडित बच्ची मुक्त

छोटा शिमला के एक व्यवसायी परिवार में एक लड़की पारिवारिक कलह और पैसों के खेल के कारण पिछले सात सालों से प्रताडित हो रही थी! जिसे अथक परिश्रम के बाद विगत रविवार ५ जुलाइ को अंततः मुक्त करवा लिया गया!

रविवार को चाइल्ड line शिमला के संयोजक शफीकुर रहमान खान के नेत्रित्व में वीरेंदर पाल और देवेंदर कुमार की टीम ने न्यू शिमला पुलिस स्टेशन के सहयोग से ने बच्ची को छोटा शिमला से अपने संरक्षण में ले लिया

दुसरे दिन बच्ची को सी डब्लू सी के समक्ष प्रस्तुत किया गया, जहाँ से उसे अस्थाई शेल्टर की व्यवस्था दी गई और उसके पश्चात् बच्ची को चाइल्ड line के पूर्व प्रयास से जुवेनाइल कोर्ट में पूर्व की लगी तारीख के अनुसार पेश किया गया, जहाँ से बच्ची को उसकी इक्षानुसार उसके चाचा के साथ भेज दिया गया, माननीय न्यायधीश ने मामले की गंभीरता को देखते हुए अलग से घरेलु हिंसा अधिनियम के तहत अलग से मुकदमा दर्ज किए जाने का आदेश दिया है! चाइल्ड line शिमला पुरे मामले को नजदीकी से देख रहा है

PROTECTION & CARE OF CHILDREN

Photobucket Photobucket Photobucket